विषमता की पीड़ा से व्यस्त हो रहा स्पंदित विश्व महान ...........बिखरते सुख मणि गण द्युतिमान। - इस पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।

विषमता की पीड़ा से व्यस्त हो रहा स्पंदित विश्व महान;
यही दुख सुख विकास का सत्य यही भूमा का मधुमय दान।
नित्य समरसता का अधिकार, उमड़ता कारण जलधि समान;
व्यथा से नीली लहरों बीच बिखरते सुख मणि गण द्युतिमान।


इस पद्यांश में कवि ने वर्तमान विश्व की स्थिति और उसमें व्याप्त विषमता का वर्णन किया है। कवि ने बड़े ही सुंदर और संवेदनशील तरीके से यह बताया है कि कैसे आज का विश्व विविध प्रकार की समस्याओं और विषमताओं से ग्रस्त है।

नित्य समरसता का अधिकार, उमड़ता कारण जलधि समान; व्यथा से नीली लहरों बीच बिखरते सुख मणि गण द्युतिमान।

विषमता की पीड़ा से व्यस्त हो रहा स्पंदित विश्व महान: पहली पंक्ति में कवि कहता है कि विषमता (असमानता) की पीड़ा से यह महान विश्व व्यस्त हो रहा है। इसका तात्पर्य है कि इस दुनिया में हर किसी को विषमता की वजह से कष्ट हो रहा है, चाहे वह आर्थिक, सामाजिक, या किसी अन्य प्रकार की हो। यह विश्व स्पंदित (सजीव और सक्रिय) है, लेकिन फिर भी विषमता की पीड़ा से ग्रस्त है।

यही दुख सुख विकास का सत्य यही भूमा का मधुमय दान: दूसरी पंक्ति में कवि कहता है कि यही दुख और सुख विकास का सत्य है और यही भूमा (धरती) का मधुमय दान है। इसका मतलब है कि दुख और सुख दोनों जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं और यह विकास की प्रक्रिया का सत्य है। इसी प्रकार से धरती हमें जीवन का मधुर दान देती है, जिसमें दुख और सुख दोनों शामिल हैं।

नित्य समरसता का अधिकार, उमड़ता कारण जलधि समान: तीसरी पंक्ति में कवि कहता है कि नित्य (प्रतिदिन) समरसता (समानता) का अधिकार होना चाहिए और यह कारण जलधि (सागर) के समान उमड़ता है। इसका तात्पर्य है कि समानता का अधिकार हर किसी को मिलना चाहिए और यह भावना हमारे भीतर सागर के समान उमड़नी चाहिए। इससे विश्व में समरसता और सामंजस्य बढ़ेगा।

व्यथा से नीली लहरों बीच बिखरते सुख मणि गण द्युतिमान: चौथी पंक्ति में कवि कहता है कि व्यथा (दुःख) के बीच नीली लहरों में सुख के मणि (रत्न) बिखरते हैं और वे द्युतिमान (चमकदार) होते हैं। इसका मतलब है कि दुःख और विपत्तियों के बीच भी सुख और आशा की किरणें होती हैं, जो जीवन को सुंदर और अर्थपूर्ण बनाती हैं।

विश्लेषण: इस पद्यांश का विश्लेषण करते समय यह स्पष्ट होता है कि कवि ने वर्तमान विश्व की विषमताओं और उसमें व्याप्त असमानता पर ध्यान केंद्रित किया है। उन्होंने यह भी बताया है कि कैसे दुख और सुख दोनों जीवन के महत्वपूर्ण अंग हैं और हमें उन्हें स्वीकार करना चाहिए। जीवन में समानता का अधिकार होना चाहिए और यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इसे प्राप्त करें। इसी प्रकार से, दुख और विपत्तियों के बीच भी हमें आशा और सुख के रत्न मिलते हैं, जो जीवन को सुंदर बनाते हैं।

कवि ने इस पद्यांश के माध्यम से यह संदेश दिया है कि वर्तमान विश्व में व्याप्त विषमताओं को दूर करना आवश्यक है। हमें समानता का अधिकार प्राप्त करने के लिए प्रयास करना चाहिए और जीवन के सभी पहलुओं को संतुलित तरीके से अपनाना चाहिए। दुख और सुख दोनों हमारे जीवन का हिस्सा हैं और हमें उन्हें स्वीकार कर जीवन को मधुर बनाना चाहिए।

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