सब गुरुजन को बुरो बतावै।अपनी खिचड़ी अलग पकावै।
भीतर तत्व न झूठी तेजी।क्यों सखि सज्जन नहिं अंगरेजी।
तीन बुलाए तेरह आवैं।निज निज बिपता रोई सुनावैं।
आँखों फूटे भरा न पेट।क्यों सखि सज्जन नहिं ग्रेजुएट।
भीतर तत्व न झूठी तेजी।क्यों सखि सज्जन नहिं अंगरेजी।
तीन बुलाए तेरह आवैं।निज निज बिपता रोई सुनावैं।
आँखों फूटे भरा न पेट।क्यों सखि सज्जन नहिं ग्रेजुएट।
इन पंक्तियों में कवि ने उन लोगों का वर्णन किया है जो स्वयं को अत्यंत बुद्धिमान और शिक्षित समझते हैं, लेकिन वास्तविकता में उनके आचरण और विचारधारा में गहरी खामियां होती हैं।
व्याख्या
1. "सब गुरुजन को बुरो बतावै।अपनी खिचड़ी अलग पकावै।"
इन पंक्तियों में कवि उन लोगों की आलोचना कर रहे हैं, जो अपने शिक्षकों या गुरुओं को गलत ठहराते हैं और स्वयं को सभी से श्रेष्ठ मानते हैं। यह समाज में अलग-थलग रहने वाले और अपनी ही धुन में मग्न रहने वाले लोगों का संकेत है, जो अपनी खिचड़ी अलग पकाते हैं अर्थात् अपने सिद्धांतों और विचारधारा में लीन रहते हैं और दूसरों से कोई लेना-देना नहीं रखते।
2. "भीतर तत्व न झूठी तेजी।क्यों सखि सज्जन नहिं अंगरेजी।"
यहाँ कवि उन लोगों की आलोचना कर रहे हैं, जिनके भीतर कोई वास्तविक गुण या तत्व नहीं है, लेकिन वे अपने बाहरी आचरण में अत्यधिक तेज और चालाक दिखते हैं। कवि यह प्रश्न उठाते हैं कि ये लोग सज्जन क्यों नहीं हैं? यहाँ 'अंगरेजी' शब्द का प्रयोग यह दर्शाने के लिए किया गया है कि ये लोग अंग्रेजी भाषा के प्रभाव में आकर स्वयं को श्रेष्ठ मानते हैं, जबकि उनके भीतर कोई वास्तविक गुण नहीं होता।
3. "तीन बुलाए तेरह आवैं।निज निज बिपता रोई सुनावैं।"
इन पंक्तियों में कवि ने उन लोगों का चित्रण किया है, जो एक-दूसरे को अपनी समस्याएँ सुनाने के लिए आमंत्रित करते हैं, लेकिन जब बुलावा तीन लोगों का होता है, तो तेरह लोग पहुँच जाते हैं। यहाँ कवि यह दिखाना चाहते हैं कि ऐसे लोग अपनी समस्याओं को बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत करते हैं और उन्हें अधिक महत्व देते हैं।
4. "आँखों फूटे भरा न पेट।क्यों सखि सज्जन नहिं ग्रेजुएट।"
यहाँ कवि ने उन लोगों का वर्णन किया है, जो अपनी दृष्टि तो खो देते हैं (यानी सच्चाई से अनभिज्ञ रहते हैं), लेकिन उनके पेट भरे रहते हैं (अर्थात् अपने लाभ और स्वार्थ में लिप्त रहते हैं)। कवि यह प्रश्न उठाते हैं कि ये लोग सज्जन क्यों नहीं हैं, जबकि ये ग्रेजुएट हैं। यहाँ 'ग्रेजुएट' शब्द का प्रयोग उन लोगों के लिए किया गया है, जो शिक्षित तो हैं, लेकिन उनमें नैतिकता और सच्चाई का अभाव है।
निष्कर्ष
इस प्रकार, उपर्युक्त पद्यांश में कवि ने समाज की विडंबनाओं और तथाकथित शिक्षित व्यक्तियों के आचरण पर व्यंग्य किया है। उन्होंने यह दर्शाया है कि शिक्षा का वास्तविक अर्थ केवल किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि नैतिकता, सच्चाई, और सच्चे गुणों का विकास होना चाहिए। कवि ने यह भी दिखाया है कि कैसे समाज में ऐसे लोग अपनी अलग ही दुनिया में रहते हैं और दूसरों से कटे हुए होते हैं।
इस व्याख्या के माध्यम से हमें यह समझ में आता है कि समाज में वास्तविक सज्जनता और नैतिकता का महत्व क्या है और कैसे हमें अपने आचरण को सच्चे गुणों से भरपूर रखना चाहिए, न कि केवल बाहरी दिखावे और छल-प्रपंच में लिप्त रहना चाहिए।