भारतेंदु की कविता में राष्ट्रीयता की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए

भारतेंदु हरिश्चंद्र को आधुनिक हिंदी साहित्य का जनक कहा जाता है। उनके साहित्य में राष्ट्रीयता की भावना अत्यंत प्रबल और स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। उन्होंने अपने समय की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों का गहन निरीक्षण किया और उसे अपनी कविताओं, नाटकों और निबंधों के माध्यम से व्यक्त किया। विशेष रूप से, उनकी कविताओं में देशभक्ति की भावना इस कदर भरी हुई है कि वह तत्कालीन भारतीय समाज में जागरूकता और स्वाभिमान उत्पन्न करने का कार्य करती है।

भारतेंदु की कविता में राष्ट्रीयता की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए

भारतेंदु की राष्ट्रीय भावना

भारतेंदु हरिश्चंद्र का साहित्यिक जीवन उस समय की देन है जब भारत ब्रिटिश उपनिवेशवाद के अधीन था। ब्रिटिश शासन के अत्याचार, भारतीय समाज की दुर्दशा और देश की सांस्कृतिक पहचान का संकट उनके साहित्य का मुख्य विषय रहा। उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से भारतीय समाज को जागरूक करने का प्रयास किया और उन्हें अपने गौरवशाली अतीत की याद दिलाई। उनकी रचनाओं में यह बात स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है कि वह भारतीयों में स्वाभिमान और एकता की भावना जागृत करना चाहते थे।

1. भारत दुर्दशा - भारतेंदु की सबसे प्रसिद्ध कविताओं में से एक "भारत दुर्दशा" है, जिसमें उन्होंने तत्कालीन भारतीय समाज की स्थिति का वर्णन किया है। इस कविता में उन्होंने देश की सांस्कृतिक और राजनीतिक पतन को बड़े ही मार्मिक शब्दों में प्रस्तुत किया है। उन्होंने भारतीय समाज की उस दुर्दशा को चित्रित किया है जो ब्रिटिश शासन के कारण उत्पन्न हुई थी। इस कविता के माध्यम से उन्होंने भारतीयों को उनकी वर्तमान स्थिति का बोध कराने और उनमें जागरूकता लाने का प्रयास किया।

उदाहरण:
"रोवहु सब मिलि के आवहु भारत भाई, हाय! भारत दुर्दशा देखी न जाई।
बेटा व्याज माँगे, बहू सूद खसोटै, गाय हांक लै ज्यों कसाई।"

        इस कविता में भारतेंदु ने भारत की हालत को बेहद दुखद और चिंताजनक बताया है। उनके शब्दों में भारतीयों की पीड़ा और उनकी राष्ट्रीय अस्मिता का दर्द साफ दिखाई देता है।

2. सांस्कृतिक जागरूकता और भाषा प्रेम - भारतेंदु का मानना था कि एक राष्ट्र की पहचान उसकी भाषा और संस्कृति से होती है। उन्होंने हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार को राष्ट्रीयता का एक प्रमुख आधार माना। उन्होंने हिंदी को जनमानस की भाषा बनाने का प्रयास किया और अपनी रचनाओं के माध्यम से इस भाषा को सम्मान दिलाने का कार्य किया।

उनकी कविता "निज भाषा उन्नति अहै" में उन्होंने भाषा के महत्व को रेखांकित करते हुए लिखा:
"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।"

        यह पंक्तियाँ स्पष्ट रूप से दिखाती हैं कि भारतेंदु के लिए भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं थी, बल्कि यह राष्ट्रीयता की भावना को मजबूत करने का एक साधन था। वह मानते थे कि यदि भारतीयों को अपनी भाषा और संस्कृति पर गर्व होगा, तो वे अपने देश के लिए भी गर्व महसूस करेंगे और उसे स्वतंत्र कराने के लिए संघर्ष करेंगे।

3. भारत के गौरवशाली अतीत का स्मरण - भारतेंदु की रचनाओं में अतीत का स्मरण भी राष्ट्रीयता की भावना का एक महत्वपूर्ण पक्ष है। उन्होंने अपनी कविताओं में बार-बार भारत के प्राचीन गौरव, संस्कृति और सभ्यता का वर्णन किया। उनका उद्देश्य था कि भारतीयों को उनके समृद्ध अतीत की याद दिलाई जाए, जिससे उनमें राष्ट्रीय गर्व की भावना उत्पन्न हो और वे अपने देश की स्वतंत्रता के लिए प्रेरित हों।

कविता "भारतवर्षोन्नति" में वे लिखते हैं:
"जो भूतहिं भारत को, बसायौ सिद्ध सुताय।
नवीन भारत हेतु, रघुकुल तिलक बढाय।।"

इस कविता में भारतेंदु ने भारत के अतीत की महानता को याद करते हुए कहा है कि अब समय आ गया है कि भारत के गौरव को फिर से स्थापित किया जाए। यह विचार उनकी कविताओं में बार-बार उभर कर आता है, जो उनकी गहन राष्ट्रीयता को दर्शाता है।

4. राजनीतिक चेतना और संघर्ष की प्रेरणा - भारतेंदु की कविताएँ केवल सांस्कृतिक और भाषाई जागरूकता तक ही सीमित नहीं थीं, बल्कि उन्होंने भारतीय समाज में राजनीतिक चेतना भी जगाने का प्रयास किया। उन्होंने अंग्रेजों के शोषण और अत्याचारों का कड़ा विरोध किया और भारतीयों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने की प्रेरणा दी।

उनकी कविता "अंधेर नगरी" इस संदर्भ में उल्लेखनीय है। इस कविता के माध्यम से उन्होंने उस समय की राजनीतिक और सामाजिक अन्याय को उजागर किया और भारतीय जनता को इस अन्याय के खिलाफ खड़े होने की प्रेरणा दी।

निष्कर्ष
भारतेंदु हरिश्चंद्र की कविताओं में राष्ट्रीयता की भावना इस कदर समाहित है कि वह तत्कालीन भारतीय समाज को एक नई दिशा देने में सक्षम थी। उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से भारतीयों को न केवल उनके गौरवशाली अतीत की याद दिलाई, बल्कि उन्हें वर्तमान परिस्थितियों से भी अवगत कराया और उनके अंदर राष्ट्रीयता की भावना जागृत करने का कार्य किया। उनकी कविताओं में निहित यह भावना आज भी प्रासंगिक है और भारतीय समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।

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