निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए :
" किसानों के प्रति प्रेमचंद की दृष्टि "
मुंशी प्रेमचंद को भारतीय साहित्य में किसानों का सबसे बड़ा साहित्यकार माना जाता है। उनके लेखन में किसानों की कठिनाइयों, पीड़ाओं और संघर्षों का अत्यंत सजीव और यथार्थवादी चित्रण मिलता है। प्रेमचंद की दृष्टि किसानों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण और संवेदनशील थी। उन्होंने अपने साहित्य में किसानों की समस्याओं को न केवल सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से देखा, बल्कि उनके मानसिक, भावनात्मक और नैतिक संघर्षों को भी प्रमुखता दी।
किसानों का चित्रण - प्रेमचंद के उपन्यासों और कहानियों में किसान समाज का वास्तविक चित्रण मिलता है। वे किसानों को केवल एक श्रेणी या वर्ग के रूप में नहीं देखते थे, बल्कि उनके जीवन की हर छोटी-बड़ी समस्या को अपने लेखन में पूरी गहराई से उतारते थे। उनके लेखन में किसान जीवन के सभी पहलुओं – गरीबी, शोषण, संघर्ष, अभाव, भुखमरी और कर्ज के बोझ से दबे जीवन का सजीव चित्रण किया गया है। उनकी रचनाएँ किसानों के प्रति उनकी गहरी सहानुभूति को प्रकट करती हैं, और यह बताती हैं कि प्रेमचंद ने किसानों की पीड़ा को अपने व्यक्तिगत अनुभवों से महसूस किया था।
‘गोदान’ में किसानों की स्थिति - प्रेमचंद का उपन्यास 'गोदान' किसानों की दुर्दशा का सबसे सजीव और व्यापक चित्रण करता है। इस उपन्यास का नायक होरी एक प्रतीकात्मक चरित्र है जो भारतीय किसान की संघर्षशील और पीड़ित मानसिकता का प्रतिनिधित्व करता है। होरी एक ऐसा किसान है जो अपने परिवार की खुशहाली के लिए दिन-रात मेहनत करता है, लेकिन अंततः वह कर्ज और शोषण के चक्र में फँस जाता है। होरी का सपना होता है कि वह अपने जीवन में एक गाय की प्राप्ति कर सके, जिसे वह अपने धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा मानता है। लेकिन उसकी यह आकांक्षा भी पूरी नहीं हो पाती, और उसका जीवन अंततः गरीबी और कर्ज की चक्की में पिस जाता है।
गोदान में प्रेमचंद ने किसानों की आर्थिक दशा, साहूकारों और जमींदारों द्वारा किए जा रहे शोषण, सरकारी तंत्र की उपेक्षा, और समाज के अन्य वर्गों द्वारा किसानों के साथ किए जा रहे अन्याय को स्पष्ट रूप से उजागर किया है। इस उपन्यास में किसान की जीवनशैली, उसकी सोच, उसकी आर्थिक स्थिति और उसकी सामाजिक मर्यादाओं का गहन विश्लेषण किया गया है।
‘पूस की रात’ और किसान का दुख - प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी 'पूस की रात' में भी किसान जीवन की दुर्दशा का मार्मिक चित्रण मिलता है। इस कहानी में हल्कू नामक किसान की कहानी है, जो कड़ाके की सर्दी में अपनी फसल की रक्षा करने के लिए जागता है, लेकिन उसके पास ठंड से बचने के लिए पर्याप्त कपड़े नहीं हैं। अंततः वह ठंड के कारण सो जाता है और उसकी फसल नष्ट हो जाती है। यह कहानी किसानों की गरीबी और अभावों को स्पष्ट रूप से दर्शाती है, जहाँ वे अपने जीवन की बुनियादी जरूरतें भी पूरी नहीं कर पाते।
किसानों के प्रति प्रेमचंद की सहानुभूति - प्रेमचंद की किसानों के प्रति दृष्टि केवल उनके शोषण को चित्रित करने तक सीमित नहीं थी। उन्होंने किसानों की अंतर्निहित ताकत, उनकी नैतिकता, सहनशीलता और संघर्षशीलता को भी उजागर किया। प्रेमचंद का मानना था कि भारतीय समाज का मूल आधार किसान हैं, और जब तक किसानों की स्थिति में सुधार नहीं होता, तब तक समाज की प्रगति संभव नहीं है।
प्रेमचंद की रचनाओं में किसानों के प्रति सहानुभूति स्पष्ट रूप से झलकती है। वे किसानों को समाज के उत्पीड़ित वर्ग के रूप में देखते हैं, जिन्हें न केवल आर्थिक शोषण का शिकार बनना पड़ता है, बल्कि सामाजिक और नैतिक रूप से भी उन्हें दबाव का सामना करना पड़ता है। उनकी कहानियाँ और उपन्यास किसानों की दयनीय स्थिति पर प्रकाश डालते हैं और इस स्थिति में सुधार की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
किसानों के प्रति प्रेमचंद की दृष्टि अत्यंत सहानुभूतिपूर्ण और यथार्थवादी थी। उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से किसानों की दयनीय स्थिति, उनके संघर्ष और शोषण को उजागर किया और समाज को इस बात का संदेश दिया कि किसानों की समस्याओं का समाधान समाज के सुधार और विकास के लिए आवश्यक है। प्रेमचंद की रचनाएँ आज भी किसानों की समस्याओं और उनके जीवन के संघर्षों को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। उनकी दृष्टि में किसान केवल एक आर्थिक इकाई नहीं है, बल्कि वह समाज का वह आधार है जिसके बिना समाज की संरचना असंभव है।