जयशंकर प्रसाद की राष्ट्रीय भावना " पर टिप्पणी लिखिए

निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए :
   "जयशंकर प्रसाद की राष्ट्रीय भावना"


जयशंकर प्रसाद की राष्ट्रीय भावना उनके साहित्य का एक महत्वपूर्ण और केंद्रीय पहलू है। वे हिंदी साहित्य के उन महान साहित्यकारों में से थे जिन्होंने भारतीय संस्कृति, इतिहास, और राष्ट्रप्रेम को अपनी रचनाओं के माध्यम से जीवंत किया। उनकी राष्ट्रीयता केवल राजनीतिक स्वतंत्रता की कामना तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह भारतीय समाज के सांस्कृतिक, नैतिक, और आध्यात्मिक उत्थान की ओर भी लक्षित थी।

jayashankar prasaad kee raashtreey bhaavana " par tippanee likhie

राष्ट्रीयता का सांस्कृतिक स्वरूप - प्रसाद जी की राष्ट्रीय भावना का आधार भारतीय संस्कृति और इतिहास की महानता में निहित था। उन्होंने भारतीय सभ्यता के गौरवशाली अतीत और सांस्कृतिक धरोहर को जागरूकता के साथ प्रस्तुत किया। उनके काव्य, नाटक, और कहानियों में भारतीय संस्कृति के प्रति गहरा प्रेम प्रकट होता है।

उदाहरण के लिए, उनकी कविताओं में हिमालय, गंगा, और भारत की धरती को राष्ट्रप्रेम और गौरव का प्रतीक माना गया है। उनकी प्रसिद्ध कविता "हिमाद्रि तुंग श्रृंग से" में हिमालय को भारतीय राष्ट्रीयता का प्रतीक मानकर प्रस्तुत किया गया है। इसके माध्यम से उन्होंने भारतीय समाज की महानता और उसकी अडिग शक्ति को दिखाया।

ऐतिहासिक नाटकों में राष्ट्रीय भावना - प्रसाद के नाटक उनकी राष्ट्रीय भावना के अद्वितीय उदाहरण हैं। उनके ऐतिहासिक नाटकों जैसे "स्कंदगुप्त", "चंद्रगुप्त", और "ध्रुवस्वामिनी" में भारतीय इतिहास के महान चरित्रों और घटनाओं के माध्यम से राष्ट्रप्रेम और देशभक्ति का प्रदर्शन किया गया है।

"स्कंदगुप्त" में गुप्त वंश के सम्राट स्कंदगुप्त का चरित्र भारतीय स्वाभिमान और मातृभूमि की रक्षा के लिए समर्पित वीरता का प्रतीक है। यह नाटक विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ भारतीय प्रतिरोध और देश की रक्षा के लिए कर्तव्यबोध को उजागर करता है। इसी प्रकार, "चंद्रगुप्त" नाटक में मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य की कथा है, जो राष्ट्र निर्माण और देश की स्वतंत्रता की भावना को प्रकट करती है।

सांस्कृतिक पुनर्जागरण और राष्ट्रीय एकता - प्रसाद की राष्ट्रीय भावना भारतीय समाज के सांस्कृतिक पुनर्जागरण की आकांक्षा से जुड़ी थी। वे मानते थे कि भारत की सच्ची शक्ति उसकी संस्कृति, परंपराओं और आध्यात्मिकता में निहित है। उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से भारतीय समाज को उसकी जड़ों से जोड़ने का प्रयास किया। उनका यह दृष्टिकोण था कि भारतीय समाज तभी जाग्रत और शक्तिशाली हो सकता है जब वह अपनी संस्कृति और इतिहास के प्रति गर्व महसूस करे।

प्रसाद की राष्ट्रीय भावना भारतीय समाज की एकता, भाईचारे और नैतिक मूल्यों पर आधारित थी। वे मानते थे कि राष्ट्र की असली पहचान उसके लोगों की संस्कृति, विचारधारा और उनकी आत्मशक्ति में होती है।


            जयशंकर प्रसाद की राष्ट्रीय भावना भारतीय इतिहास, संस्कृति और समाज के प्रति गहरे प्रेम और सम्मान से प्रेरित थी। उनकी रचनाओं में राष्ट्रप्रेम की भावना केवल राजनीतिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं थी, बल्कि इसमें सांस्कृतिक और नैतिक पुनरुत्थान का महत्वपूर्ण स्थान था। प्रसाद के साहित्य ने न केवल भारतीय राष्ट्रीयता को एक नई दिशा दी, बल्कि समाज को उसकी सांस्कृतिक धरोहर की पहचान करने और उस पर गर्व करने की प्रेरणा भी दी। उनकी राष्ट्रीय भावना आज भी हमें अपने राष्ट्र, संस्कृति और मूल्यों के प्रति समर्पित रहने की प्रेरणा देती है।

Post a Comment

Previous Post Next Post