"एक पेड़ के नीचे खड़े होकर हम दोनों बात करते हुए .......... आदर्श और कर्त्तव्य बदल जाते हों।" - संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए

निम्नलिखित की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए: 


एक पेड़ के नीचे खड़े होकर हम दोनों बात करते हुए नीचे एक पत्थर पर बैठ गये। उसने कहा, “देखा नहीं! ब्रिटिश - अमरीकी या फ्रान्सीसी कविता में जो मूड्स जो मनःस्थितियाँ रहती हैं- बस वे ही हमारे यहाँ भी हैं, लायी जाती हैं। सुरूचि और आधुनिक भावबोध का तकाजा है कि उन्हें लाया जाये। क्यों? इसलिए कि वहाँ औद्योगिक सभ्यता है, हमारे यहाँ भी । मानों कि कल-कारखाने खोले जाने से आदर्श और कर्त्तव्य बदल जाते हों।"

यह अंश आधुनिक हिंदी साहित्य की किसी कहानी, उपन्यास या निबंध से लिया गया है, जिसमें साहित्य और समाज की समकालीन स्थिति पर विचार किया गया है। यह संवाद उस समय के सांस्कृतिक और साहित्यिक प्रभावों को दर्शाता है, जब पश्चिमी सभ्यता और औद्योगिकीकरण का प्रभाव भारतीय साहित्य पर बढ़ रहा था।

व्याख्या - इस अंश में, दो व्यक्ति एक पेड़ के नीचे खड़े होकर बातें कर रहे हैं और फिर एक पत्थर पर बैठ जाते हैं। इस दृश्य में प्राकृतिक सौंदर्य और सरलता का चित्रण किया गया है। यह दिखाता है कि दोनों व्यक्ति एक सहज और आरामदायक वातावरण में बातचीत कर रहे हैं।

इसके बाद, दूसरे व्यक्ति ने अपनी बात शुरू की और कहा, “देखा नहीं! ब्रिटिश - अमरीकी या फ्रान्सीसी कविता में जो मूड्स जो मनःस्थितियाँ रहती हैं- बस वे ही हमारे यहाँ भी हैं, लायी जाती हैं।" यह कथन इस बात का संकेत देता है कि उस समय के भारतीय साहित्यकार और कवि पश्चिमी साहित्यिक मूड्स और मनःस्थितियों को अपनाने लगे थे। यह उनके साहित्यिक और सांस्कृतिक स्वीकृति के प्रतीक हैं।

वह व्यक्ति यह भी कहता है कि "सुरूचि और आधुनिक भावबोध का तकाजा है कि उन्हें लाया जाये।" इसका मतलब यह है कि आधुनिकता और सुरुचि के नाम पर पश्चिमी साहित्यिक तत्वों को भारतीय साहित्य में शामिल किया जाना आवश्यक माना जा रहा था। यह उस समय की सामाजिक और सांस्कृतिक धारणाओं को दर्शाता है, जहाँ आधुनिकता और प्रगतिशीलता का मापदंड पश्चिमी सभ्यता से लिया जा रहा था।

फिर व्यक्ति कहता है, "क्यों? इसलिए कि वहाँ औद्योगिक सभ्यता है, हमारे यहाँ भी ।" यह कथन भारतीय समाज के उस समय के औद्योगिक विकास की ओर इंगित करता है। यह बताता है कि पश्चिमी देशों की औद्योगिक सभ्यता के प्रभाव के कारण भारतीय साहित्यकार भी अपने साहित्य में उसी प्रकार की भावनाओं और विचारों को लाना चाहते थे।

अंत में, वह व्यक्ति कहता है, "मानों कि कल-कारखाने खोले जाने से आदर्श और कर्त्तव्य बदल जाते हों।" इस कथन का अर्थ है कि औद्योगिकीकरण और आधुनिकता के कारण लोगों के आदर्श और कर्त्तव्य बदल रहे हैं। यह व्यक्ति पश्चिमी औद्योगिकीकरण के प्रभाव की आलोचना कर रहा है और यह दर्शा रहा है कि कैसे इस प्रभाव ने भारतीय समाज और साहित्य को प्रभावित किया है।

इस अंश में गोपीनाथ महंति ने समाज और साहित्य के उस समय के सांस्कृतिक और औद्योगिक प्रभावों को उजागर किया है। यह दर्शाता है कि कैसे पश्चिमी साहित्य और सभ्यता का प्रभाव भारतीय साहित्य और समाज पर पड़ रहा था और कैसे लोग इसे अपनी साहित्यिक और सांस्कृतिक धारणाओं में शामिल कर रहे थे। यह अंश आधुनिकता और परंपरा के बीच के संघर्ष को भी उजागर करता है और यह बताता है कि कैसे लोग इन दोनों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहे थे।

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