'अंधायुग' के चरित्रों की प्रतीकात्मकता का उल्लेख करते हुए नाटक में वर्णित मूल्य संघर्ष की प्रासंगिकता बताइए।

'अंधायुग' धर्मवीर भारती द्वारा रचित एक महत्त्वपूर्ण नाटक है जो महाभारत के युद्ध के पश्चात की परिस्थिति और उसमें उत्पन्न होने वाले नैतिक, धार्मिक, और मानवीय संघर्षों को चित्रित करता है। इस नाटक में पात्रों का चयन और उनका प्रतीकात्मक प्रयोग विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है, क्योंकि वे न केवल महाभारत के अपने चरित्र के मूल भाव को बनाए रखते हैं, बल्कि आधुनिक समाज में भी उनकी प्रासंगिकता को स्पष्ट करते हैं।


1. प्रतीकात्मकता और चरित्रों की भूमिका:

इस नाटक के प्रमुख पात्र जैसे धृतराष्ट्र, गांधारी, कृष्ण, युयुत्सु, अश्वत्थामा, कर्ण आदि प्रतीकात्मक हैं, जो किसी न किसी रूप में मानव समाज के आदर्श, विचारधाराओं, और संघर्षों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

धृतराष्ट्र एक अंधे राजा हैं, जो न केवल शारीरिक रूप से अंधे हैं, बल्कि मानसिक और नैतिक दृष्टि से भी अंधे हैं। वह एक ऐसे राजा का प्रतीक हैं जो अपने स्वार्थ और मोह में अंधे होकर सत्य और न्याय से विमुख हो जाता है। उनका अंधापन मानव समाज में उन लोगों का प्रतीक है जो सत्ता की चाह और पारिवारिक मोह में अपने कर्तव्य से विमुख हो जाते हैं।

गांधारी का पात्र नारी के त्याग और संघर्ष का प्रतीक है। उन्होंने अपनी आँखों पर पट्टी बांधकर अपने पति के अंधेपन को अपनाया, जो उनकी निष्ठा का प्रतीक है। परन्तु, उनका यह निर्णय भी एक प्रकार की जड़ता का प्रतीक बन जाता है, जो उन्हें सत्य और न्याय के पक्ष में खड़े होने से रोकता है। वह मानव समाज में उन स्त्रियों का प्रतिनिधित्व करती हैं जो अपने परिवार या समाज के दबाव में अपनी स्वतंत्र सोच और दृष्टि का त्याग कर देती हैं।

कृष्ण एक विशिष्ट चरित्र हैं जो नीति, धर्म और यथार्थ का प्रतिनिधित्व करते हैं। वह एक ऐसे मार्गदर्शक का प्रतीक हैं जो धर्म की रक्षा के लिए किसी भी उपाय को उचित मानते हैं, लेकिन साथ ही वह मानवता के संकटों और दुविधाओं को भी दर्शाते हैं। कृष्ण की भूमिका यह दिखाती है कि नैतिकता और न्याय के बीच संतुलन बनाना कितना कठिन है, विशेष रूप से जब समाज भ्रष्टाचार और अधर्म में लिप्त हो।

अश्वत्थामा का पात्र युद्ध के बाद की मानसिक स्थिति और मानवीय दुर्बलता का प्रतीक है। वह अपने पिता द्रोणाचार्य की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए पांडवों के शिविर पर हमला करता है और निर्दोष बच्चों की हत्या कर देता है। यह उसकी निराशा, क्रोध और हताशा का प्रतीक है, जो यह दर्शाता है कि प्रतिशोध का मार्ग कितनी आसानी से मानव को अधर्म की ओर खींच सकता है।

युयुत्सु का पात्र उन कुछ लोगों का प्रतीक है जो धर्म और अधर्म के बीच सही निर्णय लेते हैं। वह कौरवों के परिवार का सदस्य होते हुए भी धर्म की रक्षा के लिए पांडवों का साथ देता है। उनका यह कदम यह दर्शाता है कि समाज में ऐसे लोग भी होते हैं जो नैतिकता को सत्ता और पारिवारिक संबंधों से ऊपर रखते हैं।

कर्ण का चरित्र आधुनिक समाज के उन व्यक्तियों का प्रतीक है जो अपनी पहचान, वर्ग, और समाज में सम्मान के लिए संघर्ष करते हैं। वह अपने पूरे जीवन में यह संघर्ष करते हैं कि उन्हें एक सूत पुत्र के रूप में क्यों देखा जाता है। उनके साथ किया गया अन्याय और उनके द्वार धर्म के पालन के प्रयास में भी संघर्षपूर्ण है।

2. मूल्य संघर्ष और उसकी प्रासंगिकता:

'अंधायुग' में वर्णित मूल्य संघर्ष आज के समाज में भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि महाभारत के समय था। नाटक में मूल्य संघर्ष कई स्तरों पर उभरता है:

धर्म और अधर्म के बीच संघर्ष:
धृतराष्ट्र और गांधारी जैसे पात्र अपने परिवार के मोह के कारण धर्म के पथ से भटक जाते हैं। यह संघर्ष आज भी देखा जा सकता है जब व्यक्ति अपने परिवार, समाज या जाति के मोह में फंसकर नैतिकता का त्याग कर देता है। यह आज के राजनैतिक, सामाजिक और पारिवारिक जीवन में अक्सर देखा जाता है कि लोग अपने स्वार्थ के लिए सत्य और न्याय का बलिदान कर देते हैं।

नैतिकता और यथार्थ के बीच संघर्ष:
कृष्ण की भूमिका इस बात का प्रतीक है कि नैतिकता को बनाए रखते हुए भी, कभी-कभी हमें यथार्थ के कठोर निर्णय लेने पड़ते हैं। आज के समय में, जब समाज और राजनीति में नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है, यह संघर्ष और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। लोग अक्सर नैतिकता और वास्तविकता के बीच सही निर्णय नहीं कर पाते और अपने स्वार्थों के लिए अनुचित रास्तों को अपनाते हैं।

प्रतिशोध और क्षमा के बीच संघर्ष:
अश्वत्थामा का चरित्र प्रतिशोध की भावना को दर्शाता है जो विनाश का कारण बनती है। आधुनिक समाज में भी प्रतिशोध की भावना को लेकर बहुत सारे संघर्ष होते हैं, चाहे वह व्यक्तिगत हों, सांप्रदायिक हों, या फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर के। 'अंधायुग' यह संदेश देता है कि प्रतिशोध केवल विनाश लाता है और क्षमा और समर्पण ही सच्चे अर्थों में शांति और सद्भावना को स्थापित कर सकते हैं।

स्वतंत्रता और अनुशासन के बीच संघर्ष:
नाटक में कई पात्र अपने निर्णयों में स्वतंत्रता का प्रयोग करते हैं, लेकिन उन्हें अनुशासन और सामाजिक जिम्मेदारियों के साथ संतुलित करना होता है। आधुनिक समाज में यह संघर्ष और भी अधिक स्पष्ट है, जहाँ व्यक्ति स्वतंत्रता की मांग करता है, लेकिन सामाजिक और नैतिक अनुशासन के महत्व को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है।

परंपरा और आधुनिकता के बीच संघर्ष:
'अंधायुग' में वर्णित घटनाएं और पात्र प्राचीन परंपराओं और आधुनिक दृष्टिकोण के बीच के टकराव को दर्शाते हैं। जैसे कि धृतराष्ट्र का अपने परिवार के प्रति अंधेपन का समर्थन करना एक पारंपरिक मानसिकता को दर्शाता है, जबकि युयुत्सु का निर्णय एक आधुनिक दृष्टिकोण को दर्शाता है जहाँ नैतिकता को प्राथमिकता दी जाती है। आज के समाज में, जहाँ पुरानी परंपराएँ और नई सोच लगातार टकरा रही हैं, यह संघर्ष बहुत ही प्रासंगिक है।

3. 'अंधायुग' का समकालीन समाज के लिए संदेश:

'अंधायुग' केवल महाभारत के पात्रों की कहानी नहीं है, बल्कि यह आज के समाज के लिए एक गहरा और सार्थक संदेश है। यह नाटक हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम अपने जीवन में किस तरह के मूल्यों को प्राथमिकता देते हैं और किस तरह से हमारे निर्णय हमारे समाज और आने वाली पीढ़ियों पर प्रभाव डालते हैं।

नाटक यह भी स्पष्ट करता है कि धर्म और अधर्म, सत्य और असत्य के बीच की रेखा हमेशा स्पष्ट नहीं होती। कई बार हमें अपने सिद्धांतों और विश्वासों का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता होती है। यह हमें यह सिखाता है कि चाहे परिस्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो, हमें हमेशा सत्य, न्याय और मानवता के पक्ष में खड़ा रहना चाहिए।

निष्कर्ष:
'अंधायुग' में धर्मवीर भारती ने महाभारत के युद्ध के बाद की स्थिति को प्रतीकात्मकता के माध्यम से न केवल उसके मूल भाव को व्यक्त किया है, बल्कि उसे आधुनिक समाज के लिए भी प्रासंगिक बना दिया है। नाटक के पात्र और उनमें निहित मूल्य संघर्ष, आज के समाज के नैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक समस्याओं को दर्शाते हैं। यह नाटक आज भी हमें सोचने पर मजबूर करता है कि हमारे जीवन के उद्देश्य क्या हैं, हमारे निर्णयों का समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है, और हम किस तरह से अपने मूल्यों के साथ समझौता किए बिना अपने कर्तव्यों का पालन कर सकते हैं। इस प्रकार, 'अंधायुग' न केवल एक नाटक है, बल्कि यह एक दर्पण है जो हमारे समाज की वास्तविकता को उजागर करता है।

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