हमारे निज सुख, दुख निःश्वास
तुम्हें केवल परिहास,
तुम्हारी ही विधि पर विश्वास
हमारा चिार आश्वास
आये अनंत हत्कप तुम्हारा अविरत स्पंदन
सृष्टि शिराओं में सञ्चारित करता जीवन,
खोल जगत के शत शत नक्षत्रों से लोचन
भेदन करते अहंकार तुम जग का क्षण-क्षण
सत्य तुम्हारी राज यष्टि सम्मुख नत त्रिभुवन,
भूप अकिंचन,
अटल शास्ति नित करते पालन ।
संदर्भ : - यह पद्यांश महाकवि जयशंकर प्रसाद की रचनाओं से लिया गया प्रतीत होता है, जिनकी कविता और गद्य में गहन दार्शनिक विचारधारा का समावेश होता है। जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के छायावादी युग के प्रमुख कवि थे, और उनकी कृतियों में जीवन, प्रकृति, मानवता, और ईश्वर के प्रति गहरी अनुभूति व्यक्त की गई है। इस पद्यांश में कवि ने उस असीम और सर्वव्यापी शक्ति की ओर इशारा किया है, जो पूरे ब्रह्मांड का संचालन करती है और जिसके समक्ष हमारे व्यक्तिगत अनुभव और भावनाएं तुच्छ प्रतीत होती हैं।
व्याख्या : -
"हमारे निज सुख, दुख निःश्वास तुम्हें केवल परिहास,"
इस पंक्ति में कवि ने उस असीम शक्ति के दृष्टिकोण से हमारे सुख-दुःख और सांसारिक चिंताओं को परिभाषित किया है। कवि का कहना है कि हमारे व्यक्तिगत सुख-दुःख और जीवन की छोटी-छोटी घटनाएं उस महान शक्ति के लिए केवल एक परिहास के समान हैं। यह शक्ति इतनी महान और व्यापक है कि हमारे जीवन के अनुभव उसके लिए नगण्य हैं।
"तुम्हारी ही विधि पर विश्वास हमारा चिार आश्वास,"
कवि यहाँ यह व्यक्त कर रहे हैं कि हमारे विचार और विश्वास उसी असीम शक्ति की विधि (नियम) पर आधारित हैं। हमारी सारी आशाएँ और विश्वास इसी पर टिके हुए हैं, और यह शक्ति ही हमारे जीवन की दिशा निर्धारित करती है। इस प्रकार, हमारी सारी चिंताएं, भय और आशाएँ उसी पर निर्भर करती हैं।
"आये अनंत हत्कप तुम्हारा अविरत स्पंदन सृष्टि शिराओं में सञ्चारित करता जीवन,"
यह पंक्ति उस असीम शक्ति के निरंतर और अनंत स्पंदन (वाइब्रेशन) को दर्शाती है, जो सृष्टि की नसों में जीवन का संचार करता है। यह स्पंदन हर जगह फैला हुआ है और इसी से सम्पूर्ण ब्रह्मांड का जीवन चलता है। यह दर्शाता है कि यह शक्ति निरंतर और अटूट है, और इसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
"खोल जगत के शत शत नक्षत्रों से लोचन भेदन करते अहंकार तुम जग का क्षण-क्षण सत्य,"
इस पंक्ति में कवि उस असीम शक्ति की व्यापकता और उसके अहंकार का वर्णन करते हैं। यह शक्ति जगत के शत-शत नक्षत्रों (सितारों) को भी देख सकती है और उनका भेदन कर सकती है। यह अहंकार ही इस जगत का क्षण-क्षण सत्य है। इसका अर्थ यह है कि इस शक्ति की दृष्टि से कुछ भी छिपा नहीं है, और वह हर क्षण सत्य को उजागर करती है।
"तुम्हारी राज यष्टि सम्मुख नत त्रिभुवन, भूप अकिंचन,"
कवि कहते हैं कि इस असीम शक्ति की राज यष्टि (राजदंड) के सामने तीनों लोक (त्रिभुवन) और सभी राजा-महाराजा भी नतमस्तक होते हैं। यहां तक कि सबसे शक्तिशाली और समृद्ध राजा भी इस शक्ति के सामने कुछ भी नहीं है। यह शक्ति इतनी महान है कि सभी उस पर निर्भर हैं और उसकी सत्ता के आगे नतमस्तक होते हैं।
"अटल शास्ति नित करते पालन,"
अंतिम पंक्ति में कवि उस असीम शक्ति के अटल और स्थिर नियमों का वर्णन करते हैं। यह शक्ति सदैव अपने नियमों का पालन करती है और यह नियम कभी नहीं बदलते। यही नियम इस जगत को संचालित करते हैं और जीवन को उसकी दिशा देते हैं।
इस पद्यांश में कवि ने उस असीम शक्ति के प्रति अपने श्रद्धा भाव को प्रकट किया है, जो सृष्टि का संचालन करती है और जिसके समक्ष हमारे व्यक्तिगत अनुभव और भावनाएं नगण्य हैं। कवि ने इस शक्ति की व्यापकता, अटलता और सर्वव्यापकता को गहनता से व्यक्त किया है। यह पद्यांश हमें जीवन के गहनतम सत्य से अवगत कराता है और उस असीम शक्ति की महत्ता को समझने की प्रेरणा देता है।