" रोवहु सब मिलि के आवहु भारत भाई। .......हा। हा। भारत दुर्दशा न देखी जाई।। " - पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।

रोवहु सब मिलि के आवहु भारत भाई। 
हा हा! भारत दुर्दशा न देखी जाई।।
सबके पहिले जेहि ईश्वर धन बल दीनो।
सबके पहिले जेहि सभ्य विधाता कीनो।। 
सबके पहिले जो रूप रंग रस भीनो।
सबके पहिले विद्याफल जिन गहि लीनो ।।
अब सबके पीछे सोई परत लखाई।
हा। हा। भारत दुर्दशा न देखी जाई।।


संदर्भ:- यह पद्यांश हिंदी साहित्य के महान कवि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की कविता "भारत दुर्दशा" से लिया गया है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के जनक माने जाते हैं, और उन्होंने अपनी कविताओं, नाटकों, और लेखों के माध्यम से देशभक्ति, समाज सुधार और भारतीय संस्कृति के उत्थान के प्रति जागरूकता फैलाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। "भारत दुर्दशा" कविता में उन्होंने भारत की उस समय की स्थिति का वर्णन किया है जब देश ब्रिटिश शासन के अधीन था। यह कविता भारत की प्राचीन गौरवशाली स्थिति और उस समय की दयनीय अवस्था के बीच की तुलना करती है, और कवि ने अपने देशवासियों को इस स्थिति पर शोक व्यक्त करने और इसे सुधारने के लिए प्रेरित किया है।

व्याख्या : - 

इस पद्यांश में कवि ने भारत की वर्तमान दयनीय स्थिति का वर्णन किया है और अपने देशवासियों से आग्रह किया है कि वे इस स्थिति पर ध्यान दें। पद्यांश की पहली पंक्ति "रोवहु सब मिलि के आवहु भारत भाई।" में कवि अपने देशवासियों को "भारत भाई" कहकर संबोधित करते हैं और उन्हें एकजुट होकर देश की दुर्दशा पर शोक व्यक्त करने के लिए बुलाते हैं। कवि के अनुसार, देश की स्थिति इतनी खराब हो गई है कि इसे देखकर केवल रोना ही शेष रह गया है।

अगली पंक्ति "हा हा! भारत दुर्दशा न देखी जाई।" में कवि के मन की गहरी पीड़ा व्यक्त होती है। भारत की वर्तमान स्थिति को देखकर उन्हें इतना दुःख होता है कि वे इसे सहन नहीं कर सकते। भारत, जो कभी समृद्ध और शक्तिशाली था, अब गुलामी और अपमान की जंजीरों में जकड़ा हुआ है। यह पंक्ति कवि की वेदना और देश की दुर्दशा पर उनकी असहायता को प्रकट करती है।

इसके बाद की पंक्तियों में कवि भारत की प्राचीन समृद्धि और गौरवशाली स्थिति का उल्लेख करते हैं। "सबके पहिले जेहि ईश्वर धन बल दीनो।" इस पंक्ति में कवि यह बताते हैं कि ईश्वर ने सबसे पहले भारत को धन, बल और समृद्धि का आशीर्वाद दिया था। यह वह समय था जब भारत सबसे समृद्ध और शक्तिशाली देश था। "सबके पहिले जेहि सभ्य विधाता कीनो।" इस पंक्ति में कवि यह कहते हैं कि विधाता ने सबसे पहले भारत को सभ्यता और संस्कृति का आशीर्वाद दिया। भारत की संस्कृति और सभ्यता इतनी महान थी कि पूरे विश्व में इसकी प्रशंसा होती थी।

अगली पंक्ति "सबके पहिले जो रूप रंग रस भीनो।" में कवि भारत की प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विविधता का वर्णन करते हैं। भारत की भूमि पर सबसे पहले सौंदर्य, रंग और रस का आभास हुआ था। "सबके पहिले विद्याफल जिन गहि लीनो।" इस पंक्ति में कवि भारत की प्राचीन शिक्षा और विद्या की परंपरा का उल्लेख करते हैं। भारत वह देश था जिसने सबसे पहले शिक्षा और ज्ञान का फल प्राप्त किया, और जिसने पूरे विश्व को ज्ञान का प्रकाश दिया।

अंत में, कवि कहते हैं "अब सबके पीछे सोई परत लखाई।" यह पंक्ति भारत की वर्तमान दयनीय स्थिति का वर्णन करती है, जहां भारत, जो कभी विश्व में अग्रणी था, अब सबसे पीछे रह गया है। यह स्थिति कवि के लिए अत्यंत पीड़ादायक है, और वे पुनः कहते हैं "हा। हा। भारत दुर्दशा न देखी जाई।" इस पंक्ति में कवि की गहरी पीड़ा और निराशा स्पष्ट रूप से व्यक्त होती है। वे यह कह रहे हैं कि भारत की वर्तमान स्थिति इतनी दयनीय हो गई है कि इसे देखा नहीं जा सकता।

            इस पद्यांश में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने भारत की प्राचीन गौरवशाली स्थिति और वर्तमान दयनीय अवस्था का मार्मिक चित्रण किया है। उन्होंने अपने देशवासियों से आग्रह किया है कि वे इस स्थिति को समझें और इसे सुधारने के लिए प्रयास करें। यह पद्यांश केवल एक कविता नहीं है, बल्कि यह एक आह्वान है, जो हमें अपने देश के प्रति हमारी जिम्मेदारियों का अहसास कराता है।



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