निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 500 शब्दों में दीजिए।
- क) सामाजिक भाषा विज्ञान
- ख) भारतीय भाषा परिवार
प्रश्न (क): सामाजिक भाषा विज्ञान (Sociolinguistics)
उत्तर: - सामाजिक भाषा विज्ञान भाषा और समाज के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन है। यह भाषा के उन पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करता है जो सामाजिक संदर्भों में बदलते हैं, जैसे कि भाषा किस प्रकार व्यक्ति की सामाजिक स्थिति, जाति, लिंग, आयु, शिक्षा, क्षेत्र और पेशे से प्रभावित होती है। सामाजिक भाषा विज्ञान यह समझने का प्रयास करता है कि भाषा का प्रयोग समाज में किस प्रकार होता है और यह समाज की संरचना को कैसे दर्शाता है।
सामाजिक भाषा विज्ञान के प्रमुख अध्ययन क्षेत्र निम्नलिखित हैं:
- भाषा विविधता (Language Variation): - समाज में विभिन्न बोलियों और भाषाओं का प्रयोग होता है। सामाजिक भाषा विज्ञान यह अध्ययन करता है कि एक ही भाषा कैसे विभिन्न सामाजिक समूहों में भिन्न रूपों में बोली जाती है। उदाहरण के लिए, हिन्दी भाषा दिल्ली, बिहार, राजस्थान आदि में अलग-अलग बोलियों में प्रकट होती है।
- कोड स्विचिंग (Code Switching): - जब वक्ता बातचीत में एक से अधिक भाषाओं का प्रयोग करता है, जैसे हिन्दी और अंग्रेज़ी का मिश्रण ("हिंग्लिश")—इसे कोड स्विचिंग कहा जाता है। यह स्थिति बहुभाषी समाजों में सामान्य है।
- भाषा और लिंग (Language and Gender): - सामाजिक भाषा विज्ञान यह भी अध्ययन करता है कि स्त्री और पुरुष भाषा का प्रयोग कैसे भिन्न रूप से करते हैं। यह अध्ययन भाषाई व्यवहार में लिंग आधारित भिन्नताओं को उजागर करता है।
- भाषा और शक्ति (Language and Power): - भाषा समाज में सत्ता और प्रभुत्व के साधन के रूप में कार्य करती है। कुछ भाषाओं को समाज में अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त होती है, जबकि कुछ को हीन समझा जाता है। जैसे, अंग्रेज़ी को भारत में एक प्रभुत्वशाली भाषा माना जाता है।
- भाषा नीति और योजना (Language Policy and Planning): - यह अध्ययन करता है कि किस प्रकार सरकारें और संस्थाएँ भाषाओं के प्रचार, संरक्षण, और विकास के लिए योजनाएँ बनाती हैं। भारत में तीन-भाषा सूत्र एक उदाहरण है।
इस प्रकार, सामाजिक भाषा विज्ञान यह स्पष्ट करता है कि भाषा कोई स्थिर प्रणाली नहीं है, बल्कि यह समाज की सामाजिक संरचना और गतिशीलता के अनुसार बदलती रहती है।
प्रश्न (ख): भारतीय भाषा परिवार
उत्तर: - भारत भाषाई विविधता के लिए विश्वप्रसिद्ध है। यहाँ सैकड़ों भाषाएँ बोली जाती हैं, जिन्हें विभिन्न भाषा परिवारों में वर्गीकृत किया गया है। एक भाषा परिवार वह समूह होता है जिसमें भाषाएँ एक साझा पूर्वज भाषा से विकसित होती हैं। भारत में प्रमुख रूप से पाँच भाषा परिवार पाए जाते हैं, जिनमें से दो सबसे प्रमुख हैं: भारोपीय (इंडो-आर्यन) और द्रविड़ (Dravidian)।
- भारोपीय भाषा परिवार (Indo-Aryan): - यह सबसे बड़ा भाषा परिवार है और उत्तर, पश्चिम तथा मध्य भारत में इसकी भाषाएँ बोली जाती हैं। इसकी प्रमुख भाषाएँ हैं: हिन्दी , उर्दू, मराठी, पंजाबी , गुजराती, बंगला, असमिया, उड़िया ये भाषाएँ संस्कृत से निकली हैं और देवनागरी सहित अन्य लिपियों में लिखी जाती हैं।
- द्रविड़ भाषा परिवार: - यह भाषा परिवार मुख्यतः दक्षिण भारत में पाया जाता है। इसकी प्रमुख भाषाएँ हैं:. तमिल. तेलुगु, कन्नड़, मलयालम इन भाषाओं की अपनी स्वतंत्र धारा रही है और इनका विकास वैदिक संस्कृति से भिन्न पृष्ठभूमि में हुआ है।
- ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा परिवार: - यह मुख्यतः झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और मध्य भारत के जनजातीय क्षेत्रों में बोली जाती हैं। इसकी प्रमुख भाषाएँ हैं: संथाली, मुंडारी, हो
- तिब्बती-बर्मी भाषा परिवार: - यह उत्तर-पूर्व भारत में प्रचलित है। जैसे: मिजो, नागा भाषाएँ, बोडो
- नीलोतिक या अंडमानी भाषा परिवार: - अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में बोली जाने वाली भाषाएँ इस परिवार में आती हैं, जैसे ओंग, जरावा, ग्रेट अंडमानी।
निष्कर्ष: - भारतीय भाषा परिवार देश की सांस्कृतिक विविधता और ऐतिहासिक विकास को दर्शाते हैं। भारत की भाषाएँ केवल संचार का साधन नहीं, बल्कि समाज की पहचान, परंपरा और संस्कृति की संवाहक हैं। भारतीय संविधान ने 22 भाषाओं को अनुसूची आठ में मान्यता दी है, जो विभिन्न भाषा परिवारों से संबंधित हैं और राष्ट्र की एकता में विविधता को समाहित करती हैं।