सामाजिक यथार्थ के परिप्रेक्ष्य में अंधेर नगरी नाटक की समीक्षा कीजिए

अंधेर नगरी भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण नाटक है, जो भारतीय समाज में व्याप्त विभिन्न समस्याओं और यथार्थ को उजागर करता है। यह नाटक समाज के हर वर्ग को स्पष्ट और तीव्रता से संबोधित करता है और इसमें सामाजिक असमानता, न्याय की दुर्बलता, आर्थिक असुरक्षा और धार्मिक आडंबर जैसे विषयों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया गया है।


नाटक की पृष्ठभूमि

इस नाटक की कहानी एक काल्पनिक नगर की है, जहां का राजा अत्यधिक अन्यायी और भ्रष्ट है। नाटक की शुरुआत एक ग़रीब फकीर से होती है, जो अपने दो शिष्यों के साथ इस नगर में आता है। फकीर अपने शिष्यों को इस नगर के बारे में चेतावनी देता है, लेकिन शिष्य नगर की अनोखी और विचित्र व्यवस्था से आकर्षित होते हैं। यहां सब कुछ सस्ते दामों में मिलता है, जो यह दर्शाता है कि न्याय और मूल्य दोनों यहां बिलकुल अनिश्चित हैं।

सामाजिक असमानता और न्यायहीनता

नाटक का प्रमुख विषय सामाजिक असमानता और न्याय की दुर्बलता है। राजा और उसके मंत्रियों का शोषणकारी और स्वार्थपूर्ण शासन नाटक के केंद्र में है। राजा की न्याय प्रणाली हास्यास्पद और अन्यायी है, जिसमें अपराधी और निर्दोष का कोई भेद नहीं है। उदाहरण के लिए, एक जगह पर राजा ने दोषी के बजाय निर्दोष व्यक्ति को फांसी पर लटका दिया। यह दृश्य स्पष्ट रूप से न्याय की दुर्बलता और सामाजिक असमानता को उजागर करता है।

आर्थिक असुरक्षा

नाटक में गरीबी और भुखमरी को भी महत्वपूर्ण रूप में प्रस्तुत किया गया है। ग़रीब लोग अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं और हर रोज़ की आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ हैं। राजा और उसके मंत्री गरीब जनता का शोषण करते हैं और भ्रष्टाचार की चपेट में हैं। यह आर्थिक असुरक्षा और समाज के निचले वर्ग के लोगों की स्थिति को दर्शाता है। यहां तक कि फकीर और उसके शिष्य भी इस व्यवस्था के शिकार बन जाते हैं।

धार्मिक आडंबर और ढोंग

नाटक में धार्मिक आडंबर और ढोंग को भी महत्व दिया गया है। धर्म का उपयोग समाज में सत्ता और प्रभुत्व के लिए किया जाता है, और लोग धर्म के नाम पर अपने स्वार्थ को पूरा करते हैं। राजा और उसके मंत्री धर्म को अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करते हैं और धार्मिकता का दिखावा करते हैं। यह सामाजिक यथार्थ का एक महत्वपूर्ण पक्ष है, जिसमें धार्मिक पाखंड और अंधविश्वास को दर्शाया गया है।

नाटक का प्रमुख पात्र और उसकी भूमिका

नाटक का प्रमुख पात्र राजा और उसके मंत्री हैं, जो समाज में व्याप्त अराजकता और अन्यायी व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं। राजा की न्याय प्रणाली अन्यायी और हास्यास्पद है, जिसमें निर्दोष लोगों को सजा दी जाती है। राजा और उसके मंत्री समाज के उच्च वर्ग के लोग हैं, जो गरीब और निर्दोष लोगों का शोषण करते हैं। इसके विपरीत, फकीर और उसके शिष्य समाज के निचले वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं और अन्यायी व्यवस्था के शिकार बनते हैं।

निष्कर्ष - अंधेर नगरी भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की एक महत्वपूर्ण रचना है, जो भारतीय समाज में व्याप्त विभिन्न समस्याओं और यथार्थ को उजागर करती है। नाटक में सामाजिक असमानता, न्याय की दुर्बलता, आर्थिक असुरक्षा और धार्मिक आडंबर जैसे विषयों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया गया है। यह नाटक समाज के हर वर्ग को स्पष्ट और तीव्रता से संबोधित करता है और समाज में सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश देता है। इस नाटक के माध्यम से लेखक ने समाज की व्यंगात्मक चित्रण किया है और समाज में व्याप्त बुराइयों को उजागर किया है। यह नाटक आज भी प्रासंगिक है और समाज में व्याप्त समस्याओं को समझने और सुधारने के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है।

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