छायावाद हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण युग है, जो लगभग 1918 से 1936 तक का समय माना जाता है। यह काल हिंदी काव्य के विकास में एक नई दिशा की ओर संकेत करता है, जिसमें काव्य की अभिव्यक्ति, भावनाओं की गहनता, और भाषा की सजीवता में नए प्रयोग किए गए। छायावाद का शाब्दिक अर्थ है "छाया की ओर झुकाव"। इस युग के कवियों ने मानव जीवन की रहस्यमयता, प्रेम, प्रकृति, और आत्मा की अनंतता को अपनी कविताओं में अभिव्यक्त किया। छायावाद को हिंदी साहित्य में "रोमांटिक आंदोलन" के रूप में भी जाना जाता है।
छायावाद की काव्य प्रवृत्तियों को समझने के लिए उसकी कुछ मुख्य विशेषताओं का विवेचन करना आवश्यक है। इन विशेषताओं में रहस्यवाद, प्रकृति प्रेम, मानवतावाद, स्वच्छंदतावाद, व्यक्तिवाद, और कल्पनाशीलता प्रमुख हैं। इन प्रवृत्तियों को सोदाहरण समझाया जा रहा है।
1. रहस्यवाद
छायावाद का प्रमुख तत्व रहस्यवाद है, जिसमें कवियों ने परमात्मा, आत्मा, और जीवन के अनंत रहस्यों को गहनता से व्यक्त किया है। यह प्रवृत्ति ईश्वर और आत्मा के संबंध में एक गूढ़ और रहस्यमय दृष्टिकोण अपनाती है। छायावादी कवि आत्मा के आंतरिक संसार को उजागर करने का प्रयास करते हैं और उन्हें परमात्मा से एकाकार होने की आकांक्षा होती है।
उदाहरण: महादेवी वर्मा की कविता 'मैं नीर भरी दुख की बदली' में रहस्यवाद की प्रवृत्ति स्पष्ट दिखाई देती है:
“मैं नीर भरी दुख की बदली।स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,क्रंदन में आहत विश्व हंसा,नयनों में दीपक से जलते,पलकों में निर्झारिणी मचली।”
इस कविता में महादेवी ने जीवन की पीड़ा और आनंद के रहस्यमय संबंध को दर्शाया है। यह रहस्यवाद का एक उदाहरण है, जहाँ कवि के मनोभाव परमात्मा के साथ संबंध स्थापित करते हैं।
2. प्रकृति प्रेम
छायावादी कवियों ने प्रकृति के प्रति गहरा प्रेम और आकर्षण व्यक्त किया। उनकी कविताओं में प्रकृति केवल एक बाहरी दृश्य नहीं, बल्कि एक सजीव और संवेदनशील साथी के रूप में प्रस्तुत होती है। प्रकृति के विभिन्न रूपों, जैसे- पेड़, पौधे, नदी, पहाड़, आकाश, और बादल के माध्यम से कवियों ने अपनी भावनाओं और अनुभूतियों को व्यक्त किया।
उदाहरण: जयशंकर प्रसाद की कविता 'कामायनी' में प्रकृति प्रेम की अभिव्यक्ति देखी जा सकती है:
“वह पुर: प्राची का कुमुद, वह कमल कुंज अनंत। वह मृदु गंध व्याप्त अमल, वह प्रणय-कमलाकंत।।"
इस उदाहरण में कवि ने प्रकृति के सौंदर्य और उसके साथ एकात्मकता की भावना को व्यक्त किया है। यहाँ प्रकृति को मानवीय रूप दिया गया है, जो कवि की संवेदनशीलता और प्राकृतिक सौंदर्य के प्रति उनके प्रेम को दर्शाता है।
3. मानवतावाद
छायावाद में मानवतावाद की प्रवृत्ति भी प्रमुख रूप से दिखाई देती है। छायावादी कवियों ने मानव जीवन की महत्ता, उसकी समस्याओं, और उसके संघर्षों को अपनी कविताओं में स्थान दिया। उन्होंने मनुष्य के अस्तित्व, उसकी संवेदनाओं, और उसके अधिकारों की बात की।
उदाहरण: सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' की कविता 'वह तोड़ती पत्थर' मानवतावाद का एक उत्कृष्ट उदाहरण है:
“वह तोड़ती पत्थर,देखा मैंने इलाहाबाद के पथ पर,वह तोड़ती पत्थर।”
इस कविता में निराला ने एक मजदूर महिला के संघर्षमय जीवन को चित्रित किया है, जो कठिन परिस्थितियों में भी अपने कर्तव्य का निर्वाह करती है। यह कविता मनुष्य के जीवन संघर्ष और उसकी मजबूती को दर्शाती है।
4. स्वच्छंदतावाद
स्वच्छंदतावाद छायावाद का एक और महत्वपूर्ण तत्व है। इस प्रवृत्ति के अंतर्गत कवि अपनी रचनाओं में स्वतंत्रता, स्वाभिमान, और आत्मविश्वास को प्रकट करते हैं। वे किसी भी प्रकार की सामाजिक, धार्मिक, या राजनीतिक बंधन से मुक्त होकर अपने भावों को अभिव्यक्त करते हैं।
उदाहरण: सुमित्रानंदन पंत की कविता 'पुष्प की अभिलाषा' में स्वच्छंदतावाद का तत्व स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है:
“मुझे तोड़ लेना बनमाली,उस पथ पर देना तुम फेंक,मातृभूमि पर शीश चढ़ाने,जिस पथ जाएँ वीर अनेक।”
इस कविता में कवि ने एक पुष्प की भावना के माध्यम से स्वतंत्रता के प्रति प्रेम और मातृभूमि के प्रति समर्पण की भावना को प्रकट किया है। यहाँ कवि ने एक पुष्प के माध्यम से अपनी इच्छाओं को स्वच्छंदता से व्यक्त किया है।
5. व्यक्तिवाद
छायावाद में व्यक्तिवाद की भावना भी प्रबल होती है। छायावादी कवियों ने अपनी कविताओं में व्यक्तित्व की स्वतंत्रता, व्यक्तिगत भावनाओं, और मनोवैज्ञानिक अनुभवों को प्रमुखता से स्थान दिया। वे अपने आंतरिक जीवन, सपनों, और संघर्षों की अभिव्यक्ति करते हैं।
उदाहरण: महादेवी वर्मा की कविता 'मैं अकेली' में व्यक्तिवाद की भावना देखी जा सकती है:
“मैं नीर भरी दुख की बदली,व्यथा-ज्वाला में दग्ध-दग्ध,अविरल जल बहती जाती।”
इस कविता में महादेवी वर्मा ने अपनी व्यक्तिगत पीड़ा, अकेलापन, और आंतरिक संवेदनाओं को व्यक्त किया है। यह व्यक्तिवाद का स्पष्ट उदाहरण है, जहाँ कवि अपने मनोभावों को स्वतंत्रता से प्रकट करता है।
6. कल्पनाशीलता
छायावादी कवियों की कविताओं में कल्पनाशीलता का भी एक महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने अपनी कविताओं में कल्पना का सहारा लेकर जीवन की गहराइयों, मानव मनोविज्ञान, और रहस्यपूर्ण संसार की अभिव्यक्ति की। उनकी कविताओं में चित्रात्मकता, सजीवता, और अभिव्यक्ति की गहनता देखने को मिलती है।
उदाहरण: जयशंकर प्रसाद की कविता 'आँसू' में कल्पनाशीलता की उत्कृष्टता देखी जा सकती है:
“बूँद पड़ी उस समय अचानक,जब मैं रोया था अलस्सुबह,एकांत रात्री में चुपके से,आँसू की तरह।”
यहाँ कवि ने आँसू को बूँद के रूप में कल्पित किया है और उसे एक रहस्यमय ढंग से प्रस्तुत किया है। यह कल्पनाशीलता का एक सुंदर उदाहरण है, जहाँ कवि ने अपने आंतरिक भावों को सजीव चित्रण के माध्यम से अभिव्यक्त किया है।
7. प्रेम और सौंदर्य का वर्णन
छायावाद के कवियों ने प्रेम और सौंदर्य के गूढ़ और रहस्यमय पक्षों को अभिव्यक्त किया। उन्होंने प्रेम को मात्र शारीरिक या सांसारिक रूप में न देखकर, उसे आत्मिक, आध्यात्मिक, और दार्शनिक रूप में प्रस्तुत किया। प्रेम और सौंदर्य का यह वर्णन छायावाद की एक अनूठी विशेषता है।
उदाहरण: सुमित्रानंदन पंत की कविता 'वीणा' में प्रेम और सौंदर्य का मनोहर चित्रण मिलता है:
“हिम-गिरि के उत्तुंग शिखर पर,बैठ शिला की शीतल छाँह,एक पुरुष भीगे नयनों से,देख रहा था प्रलय प्रवाह।”
इस कविता में प्रकृति के सौंदर्य और प्रेम के गूढ़ भावों को सुंदरता के साथ व्यक्त किया गया है। कवि ने प्रेम और सौंदर्य के अद्वितीय स्वरूप को दर्शाने के लिए कल्पनाशीलता और रहस्यवाद का सहारा लिया है।
8. राष्ट्रीयता और देश प्रेम
छायावाद के कवियों में राष्ट्रीयता और देश प्रेम की भावना भी प्रमुख रूप से देखी जाती है। स्वतंत्रता संग्राम के दौर में इन कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से देश की स्वतंत्रता, समाज सुधार, और राष्ट्रीय एकता का संदेश दिया।
उदाहरण: जयशंकर प्रसाद की कविता 'हिमाद्रि तुंग श्रृंग से' में राष्ट्रीयता और देश प्रेम का भाव देखा जा सकता है:
“हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती,स्वयंप्रभा समुज्ज्वला स्वत्व सूर्यभारती।सशक्त भुज प्रतिज्ञ से दृढ़ प्रतिष्ठ शालिनी,सुदृढ़ व्रतों की पंथिनी जय विजय विशारिणी।”
इस कविता में कवि ने मातृभूमि के गौरव, उसकी संस्कृति, और उसकी स्वतंत्रता की भावना को अभिव्यक्त किया है। यह राष्ट्रीयता और देश प्रेम का एक उत्तम उदाहरण है।
छायावाद ने हिंदी साहित्य में एक नई दिशा और दृष्टि प्रदान की। इसने हिंदी काव्य को गहराई, संवेदनशीलता, और भावनात्मकता से भर दिया। रहस्यवाद, प्रकृति प्रेम, मानवतावाद, स्वच्छंदतावाद, व्यक्तिवाद, कल्पनाशीलता, प्रेम और सौंदर्य का वर्णन, और राष्ट्रीयता जैसे तत्व छायावाद की मूल प्रवृत्तियाँ हैं। छायावादी कवियों ने अपनी रचनाओं में इन प्रवृत्तियों को अद्भुत रूप से अभिव्यक्त किया, जिससे हिंदी साहित्य में एक नई चेतना और जागरूकता आई। इन कवियों की रचनाएँ आज भी हिंदी साहित्य के प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं और उनकी प्रासंगिकता बरकरार है।