"तिरिछ कहानी और शहरी जीवन में घटती मानवीय संवेदना – एक साहित्यिक विवेचन"

'तिरिछ' कहानी के संदर्भ में शहरी आधुनिकता में लुप्त होती मानवीय संवेदना पर सोदाहरण अपने विचार व्यक्त कीजिए ।


उदय प्रकाश की कहानी 'तिरिछ' शहरी आधुनिकता में लुप्त होती मानवीय संवेदना का एक मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है। यह कहानी हमें दिखाती है कि कैसे शहरी जीवन की आपाधापी, स्वार्थपरता और संवेदनहीनता ने मनुष्य को मानवीय मूल्यों से दूर कर दिया है।

शहरी इमारतों की पृष्ठभूमि में एक अकेले बैठे व्यक्ति और एक तिरिछ जैसी छाया की आकृति – तिरिछ कहानी की संवेदनहीनता को दर्शाता दृश्य।

कहानी का मुख्य पात्र, लेखक के पिता, एक गाँव के सीधे-सादे और अत्यंत संकोची व्यक्ति हैं। उन्हें शहर से गहरा भय है, क्योंकि शहर उनके लिए एक अनबुझ पहेली और आतंक का पर्याय है। वे शहर जाने से भरसक बचते हैं, लेकिन एक अदालती पेशी के कारण उन्हें शहर जाना पड़ता है। यहीं से शहरी संवेदनहीनता का क्रूर चेहरा सामने आता है।

शहरी आधुनिकता में लुप्त होती मानवीय संवेदना के उदाहरण:

  • अज्ञानता पर उपहास और क्रूरता: जब पिता शहर में रास्ता भटक जाते हैं और अपनी मासूमियत में लोगों से तिरिछ के बारे में पूछते हैं (जो उनके लिए एक मिथकीय भय है), तो शहरी लोग उनका उपहास करते हैं। वे उन्हें पागल समझते हैं और उन पर तरह-तरह के आरोप लगाकर पीटते हैं। यह घटना शहरी समाज की उस क्रूरता को दर्शाती है, जहाँ अज्ञानता को समझने के बजाय उस पर हँसा जाता है और प्रताड़ित किया जाता है।
  • स्वार्थ और धनलिप्सा: कहानी में शहर के कुछ पात्रों का चित्रण है जो अपने स्वार्थ और धनलिप्सा के कारण मानवीयता को ताक पर रख देते हैं। वे पिता की मदद करने के बजाय उन्हें और परेशान करते हैं, जिससे उनकी स्थिति और बिगड़ जाती है। यह दिखाता है कि आधुनिक शहरी जीवन में लोग अपने लाभ के लिए दूसरों की पीड़ा को भी अनदेखा कर देते हैं।
  • संवादहीनता और अकेलापन: शहर में पिता को किसी से भावनात्मक जुड़ाव नहीं मिलता। लोग अपने-अपने कामों में व्यस्त हैं और किसी के पास दूसरे की मदद करने या उसकी भावनाओं को समझने का समय नहीं है। पिता की मृत्यु भी किसी में कोई संवेदना नहीं जगा पाती, यहाँ तक कि पुत्र में भी, जो दूर रहकर इस घटना को सुनता है। यह शहरी जीवन के अकेलेपन और संवादहीनता को उजागर करता है, जहाँ व्यक्ति भीड़ में भी अकेला महसूस करता है।
  • टेक्नोलॉजी और मानवीय दूरी: हालांकि कहानी में टेक्नोलॉजी का सीधा ज़िक्र नहीं है, लेकिन आधुनिकता का प्रभाव इस बात में निहित है कि शहर की मशीनरी और उसकी व्यवस्था इतनी जटिल हो गई है कि एक सीधा-सादा ग्रामीण व्यक्ति उसमें उलझकर रह जाता है। लोग एक-दूसरे से कटे हुए हैं और एक-दूसरे की समस्याओं से कोई सरोकार नहीं रखते।
  • मिथकीय भय बनाम वास्तविक क्रूरता: कहानी में तिरिछ एक मिथकीय भय का प्रतीक है, लेकिन शहर के लोग उससे कहीं अधिक खतरनाक और जानलेवा साबित होते हैं। जिस तिरिछ के जहर से बचने की कोशिश करते हुए पिता शहर में जाते हैं, उससे कहीं अधिक घातक शहर की संवेदनहीनता और क्रूरता साबित होती है, जो उन्हें मौत की ओर धकेल देती है।
  • कानूनी प्रक्रिया की अमानवीयता: कहानी में पिता को अदालत में पेशी के लिए शहर जाना पड़ता है। यह कानूनी प्रक्रिया, जो न्याय दिलाने के लिए होती है, उनके लिए एक भयावह अनुभव बन जाती है। शहर में उन्हें कानूनी दांव-पेंच और प्रक्रियाओं की जटिलता का सामना करना पड़ता है, जो एक ग्रामीण व्यक्ति के लिए पूरी तरह से अपरिचित और डरावनी होती है। यह दिखाता है कि कैसे आधुनिक व्यवस्थाएँ, जो सुविधा के लिए बनाई जाती हैं, संवेदनशील व्यक्तियों के लिए अमानवीय और आतंक का कारण बन सकती हैं, क्योंकि उनमें मानवीय पहलू का अभाव होता है।
  • अजनबीपन और उपेक्षा: शहर में पिता को कोई अपनापन महसूस नहीं होता। वे एक अजनबी माहौल में हैं जहाँ हर कोई अपने काम में लगा है और किसी को दूसरे की परवाह नहीं है। जब वे बीमार पड़ते हैं और उनकी स्थिति बिगड़ती है, तब भी उन्हें उचित देखभाल या सहानुभूति नहीं मिलती। यह शहरी जीवन के उस पहलू को दर्शाता है जहाँ लोग एक-दूसरे से भावनात्मक रूप से कटे हुए होते हैं और दूसरों की समस्याओं के प्रति उदासीन रहते हैं।
  • भ्रम और असहायता का शोषण: पिता के भ्रमित होने और असहाय स्थिति का शहर के लोग फायदा उठाते हैं। वे उन्हें गलत जानकारी देते हैं, उनका मज़ाक उड़ाते हैं, और उन्हें पीटते भी हैं। यह दिखाता है कि कैसे शहरी समाज में कमजोर और असहाय व्यक्ति को आसानी से शिकार बनाया जा सकता है, क्योंकि वहाँ सहानुभूति और मदद की भावना कम होती है और स्वार्थ हावी होता है।
  • प्रशासनिक उदासीनता: जब पिता की मृत्यु होती है, तो उनकी मृत्यु पर भी कोई विशेष प्रतिक्रिया या संवेदना नहीं दिखती। पुलिस और प्रशासन का रवैया भी उदासीन होता है। यह दर्शाता है कि कैसे आधुनिक प्रशासनिक व्यवस्थाएँ अक्सर मानवीय संवेदनाओं से रहित होकर केवल प्रक्रियाओं और नियमों का पालन करती हैं, जिससे मानवीय त्रासदी के प्रति भी उदासीनता बनी रहती है।
संक्षेप में, 'तिरिछ' कहानी शहरी आधुनिकता के उस स्याह पक्ष को सामने लाती है, जहाँ मानवीय संवेदनाएँ लुप्त हो गई हैं। यह हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या विकास और आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम अपनी मानवीयता को खोते जा रहे हैं। कहानी एक चेतावनी है कि यदि हम संवेदनहीनता और स्वार्थपरता की इस प्रवृत्ति को नहीं रोकते, तो हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर रहे होंगे जहाँ मानवीयता का कोई स्थान नहीं होगा।

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