हिंदी के विचारकों एवं आलोचकों के काव्य प्रयोजन संबंधी विचारों पर सोदाहरण प्रकाश डालिए ।

काव्य प्रयोजन का अर्थ काव्य के उद्देश्य से है, जो समय और समाज के अनुसार परिवर्तित होता रहता है। हिंदी साहित्य में काव्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं बल्कि सामाजिक, नैतिक और सांस्कृतिक चेतना का वाहक भी रहा है। प्राचीन काल में यह धार्मिक भावनाओं और आध्यात्मिकता से जुड़ा था, जबकि आधुनिक युग में समाज सुधार, राजनीतिक जागरूकता और व्यक्तिगत अनुभूतियों का माध्यम बना। हिंदी के आलोचकों और विचारकों ने इसे सौंदर्यबोध, आत्मानुभूति, संघर्ष और परिवर्तन का प्रेरक माना है। इस प्रकार, काव्य साहित्य व्यक्ति और समाज दोनों को प्रभावित करने वाली सशक्त अभिव्यक्ति है।

प्रमुख विचारक एवं आलोचक और उनके काव्य प्रयोजन संबंधी विचार:


1. आचार्य रामचंद्र शुक्ल: सामाजिक उपयोगिता का आग्रह
आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी आलोचना के प्रथम मौलिक विचारक माने जाते हैं। उनका मानना था कि काव्य का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं है, बल्कि उसमें समाज के लिए उपयोगिता होनी चाहिए। उन्होंने काव्य को समाज सुधार का उपकरण माना। शुक्ल जी ने कहा कि—
"कविता का उद्देश्य हृदय को उद्दीप्त करना और मनुष्य की सहानुभूति को व्यापक बनाना है।"
उन्होंने यह माना कि कविता को समाज के जीवन से जुड़ना चाहिए। कवि को चाहिए कि वह समाज की पीड़ाओं, संघर्षों और आकांक्षाओं को स्वर दे। उन्होंने तुलसीदास, कबीर, सूरदास आदि के साहित्य को समाजोन्मुख माना और साहित्य की उपयोगिता को प्राथमिकता दी।

उदाहरण:- तुलसीदास की रामचरितमानस को शुक्ल जी एक लोकमंगलकारी ग्रंथ मानते हैं क्योंकि वह समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना करता है।

2. हज़ारीप्रसाद द्विवेदी: आध्यात्मिक दृष्टिकोण
हज़ारीप्रसाद द्विवेदी जी ने काव्य के प्रयोजन को व्यापक रूप में देखा। वे मानते थे कि काव्य का कार्य केवल समाज सुधार तक सीमित नहीं है, बल्कि वह आत्मा की गहराइयों में उतरने वाला साधन है। उनके अनुसार, काव्य मनुष्य को उसकी आध्यात्मिक पहचान से जोड़ता है।

उन्होंने कबीर की वाणी को आध्यात्मिक मुक्ति की दिशा में एक सशक्त प्रयास माना। द्विवेदी जी ने कहा कि—
"काव्य केवल शब्दों की साज-सज्जा नहीं, वह आत्मा की पुकार है।"

उदाहरण:- कबीर के दोहे जैसे—
"माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोहे।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोहे।"
— को द्विवेदी जी आत्म-ज्ञान और मरणबोध का प्रतीक मानते हैं।

3. नामवर सिंह: आलोचनात्मक चेतना और ऐतिहासिक दृष्टिकोण
नामवर सिंह आधुनिक आलोचना के प्रमुख स्तंभ रहे हैं। उन्होंने काव्य प्रयोजन को एक ऐतिहासिक प्रक्रिया के रूप में देखा। उनके अनुसार, काव्य अपने समय और समाज की सच्चाइयों से कटकर नहीं रह सकता।

नामवर जी का कहना था कि—
"काव्य इतिहास की गति का भाग है। उसका प्रयोजन यथार्थ को उद्घाटित करना है।"
वे साहित्य को केवल सौंदर्य की अभिव्यक्ति न मानकर उसे सामाजिक यथार्थ की सशक्त आवाज़ मानते थे। उन्होंने मुक्तिबोध की रचनाओं को इस दृष्टि से विशेष रूप से सराहा।

उदाहरण:- मुक्तिबोध की कविता "अंधेरे में" को नामवर सिंह सामाजिक अंतर्विरोधों का उजागर करने वाला दस्तावेज़ मानते हैं।

4. रामविलास शर्मा: मार्क्सवादी दृष्टिकोण
रामविलास शर्मा ने साहित्य को वर्ग संघर्ष और सामाजिक विषमता के परिप्रेक्ष्य में देखा। उनका मानना था कि काव्य को जन-संवेदनाओं से जुड़ना चाहिए। उन्होंने साहित्य को सामाजिक चेतना का वाहक माना।

उनका कथन है—
"कविता की सबसे बड़ी कसौटी उसकी सामाजिक उपयोगिता है।"
वे यह मानते थे कि कवि का कार्य समाज को यथार्थ दिखाना और उसमें बदलाव की चेतना पैदा करना है।

उदाहरण: - निराला की कविता "भिक्षुक" को वे उस समय के समाज के आर्थिक विषमता का चित्रण मानते हैं, जहाँ भूख एक स्थायी अभिशाप बन गई थी।

5. डॉ. नगेन्द्र: सौंदर्यशास्त्रीय दृष्टिकोण
डॉ. नगेन्द्र का काव्य प्रयोजन के विषय में दृष्टिकोण तुलनात्मक रूप से अधिक सौंदर्यपरक था। वे मानते थे कि काव्य का उद्देश्य रसोत्पत्ति है। काव्य हृदय की भावनाओं की कोमल अभिव्यक्ति है, और उसका प्रयोजन सौंदर्यबोध उत्पन्न करना है।
"काव्य, भावों का कलात्मक संप्रेषण है।"
उन्होंने संस्कृत काव्यशास्त्र की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए ‘रस’ को काव्य प्रयोजन का मूल माना।

उदाहरण: - जयशंकर प्रसाद की "कामायनी" में जो रसात्मकता और भाव-समृद्धि है, वह डॉ. नगेन्द्र के अनुसार काव्य का आदर्श रूप है।

6. भवानीप्रसाद मिश्र: आत्म-अभिव्यक्ति और सादगी
भवानीप्रसाद मिश्र का मानना था कि काव्य व्यक्ति के अंतर की सच्ची और सरल अभिव्यक्ति है। वे कविता को जीवन का हिस्सा मानते थे और उसका प्रयोजन मानवता और संवेदना के विस्तार में देखते थे।
"कविता कोई बड़ी बात नहीं कहती, वह सीधे दिल से निकलती है।"
उनकी कविताओं में जीवन की सादगी, लोक संवेदना और आत्मीयता झलकती है।

उदाहरण: - उनकी कविता "सत्य के स्वर" में उन्होंने काव्य को यथार्थ का प्रतिबिंब माना।

7. अज्ञेय: प्रयोगशीलता और व्यक्तिवाद
अज्ञेय का दृष्टिकोण आधुनिक और प्रयोगवादी था। उन्होंने काव्य को आत्माभिव्यक्ति का माध्यम माना। उनके अनुसार, काव्य का प्रयोजन व्यक्ति की चेतना और अस्तित्व की खोज में है।
"कविता आत्म की अन्वेषण यात्रा है।"
वे मानते थे कि कविता को किसी बाहरी प्रयोजन से बाँधना उचित नहीं है।

उदाहरण:- उनकी कविताएँ जैसे "हरी घास पर क्षण भर लेट जाना" आत्म-केन्द्रित संवेदना का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

निष्कर्ष:
हिंदी के विचारकों और आलोचकों ने काव्य प्रयोजन के विषय में विविध दृष्टिकोण प्रस्तुत किए हैं। किसी ने उसे सामाजिक परिवर्तन का साधन माना, तो किसी ने आत्मा की अभिव्यक्ति। कुछ आलोचक सौंदर्यबोध और रसोत्पत्ति को प्रमुख मानते हैं, जबकि अन्य उसे सामाजिक यथार्थ और ऐतिहासिक चेतना से जोड़ते हैं।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि हिंदी काव्य परंपरा में काव्य प्रयोजन कोई एकांगी अवधारणा नहीं है, बल्कि यह बहुआयामी और संदर्भ-सापेक्ष विषय है। काव्य कभी मनुष्य की करुणा को जगा कर उसे संवेदनशील बनाता है, कभी यथार्थ का सामना करने के लिए प्रेरित करता है, तो कभी आत्मा की गहराइयों से साक्षात्कार कराता है।

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